मिल्लत उच्च विद्यालय, धपरा — शिक्षा, संघर्ष और उम्मीद की कहानी

मिल्लत उच्च विद्यालय, धपरा — शिक्षा, संघर्ष और उम्मीद की कहानी




गोड्डा जिले के बसंतराय प्रखंड के छोटे से गाँव धपरा में स्थित मिल्लत उच्च विद्यालय सिर्फ एक शिक्षण संस्थान नहीं है, बल्कि यह उस दौर की कहानी कहता है जब शिक्षा पाना किसी क्रांति से कम नहीं था। यह विद्यालय गाँव के इतिहास, संघर्ष, त्याग और सामूहिक प्रयास का जीवंत उदाहरण है।


आज भी यह विद्यालय सैकड़ों बच्चों के सपनों को पंख दे रहा है। लेकिन विडंबना यह है कि आज़ादी के 75 साल बाद भी इस विद्यालय तक जाने के लिए पक्की सड़क नहीं बनी है। बच्चे खेतों की संकरी मेड़ों से होकर स्कूल पहुँचते हैं, और बरसात में यह रास्ता और भी कठिन हो जाता है।



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2. स्थापना की पृष्ठभूमि


पुराने लोग बताते हैं कि जब कांग्रेस से सांसद (MP) हुआ करते थे, तब यह इलाका झारखंड नहीं, बल्कि बिहार का हिस्सा था। उस समय आस-पास में कोई उच्च विद्यालय नहीं था। इस इलाके के बच्चों को पढ़ने के लिए परसा हाई स्कूल जाना पड़ता था, जो लगभग 30 किलोमीटर दूर था।


न सड़क, न कोई परिवहन साधन — बच्चों को यह दूरी पैदल तय करनी पड़ती थी। कई छात्र थककर पढ़ाई बीच में छोड़ देते थे, और जो जाते भी थे, वे रोज़ सुबह अंधेरे में निकलकर शाम को थके-मांदे घर लौटते थे।



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मरहूम अब्दुस सलाम खान



ऐसे कठिन समय में, महेष्टिकरी गाँव के निवासी और इलाके की जानी-मानी हस्ती मरहूम अब्दुस सलाम खान ने इस हालात को बदलने का निर्णय लिया। वे स्वयं पढ़े-लिखे थे और शिक्षा के महत्व को भली-भांति समझते थे। उनका मानना था कि यदि इस इलाके में एक उच्च विद्यालय स्थापित हो जाए, तो बच्चों का जीवन बदल सकता है और समाज प्रगति की ओर बढ़ सकता है।


उन्होंने चारों ओर से राय ली और इस विद्यालय की स्थापना के लिए सबसे उपयुक्त स्थान धपरा को चुना, क्योंकि उस समय यहाँ इलाके के सबसे बड़े जमींदार रहते थे और सामाजिक प्रतिष्ठा भी सबसे अधिक थी।



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अब्दुस सलाम खान साहब ने धपरा के प्रभावशाली लोगों के सामने यह प्रस्ताव रखा। गाँव के बुजुर्ग, जमींदार और शिक्षित लोग इस विचार से सहमत हुए, क्योंकि वे भी जानते थे कि शिक्षा ही आने वाली पीढ़ी का भविष्य बदल सकती है।


कहानी में एक खास बात यह भी है कि इस विद्यालय को मान्यता दिलाने में समय बर्बाद नहीं किया गया। कहते हैं कि अब्दुस सलाम खान ने अपनी दृढ़ता और संपर्कों का उपयोग करते हुए सिर्फ 2 दिन में पटना काउंसिल से इस विद्यालय को आधिकारिक मान्यता दिला दी। उस दौर में यह अपने आप में एक अद्भुत उपलब्धि थी, क्योंकि कागजी प्रक्रिया और सरकारी मंजूरी में महीनों, यहाँ तक कि वर्षों लग जाते थे।



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विद्यालय बनाने के लिए सबसे बड़ी जरूरत थी — धन। गाँव के लोगों ने चंदा देने की कोशिश की, लेकिन इतने बड़े निर्माण के लिए यह पर्याप्त नहीं था। तभी अब्दुस सलाम खान ने एक अनोखा और साहसिक कदम उठाया — दंगल (कुश्ती प्रतियोगिता) का आयोजन।




यह कोई साधारण दंगल नहीं था, बल्कि पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया। आस-पास के गाँवों और जिलों से नामी पहलवान इसमें हिस्सा लेने आए। दर्शकों की भीड़ उमड़ पड़ी। यह आयोजन इतना सफल रहा कि इससे भारी मात्रा में धन एकत्र हुआ, जो विद्यालय की इमारत और प्रारंभिक ढांचे के निर्माण में लगाया गया।


लोग आज भी बताते हैं कि वह दंगल इस इलाके के इतिहास का सबसे बड़ा आयोजन था। न केवल पैसे जुटे, बल्कि लोगों में विद्यालय के प्रति अपनापन भी बढ़ा। गाँव के हर व्यक्ति ने इसे अपना सपना समझा।


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धन और मान्यता मिलने के बाद, निर्माण कार्य तेजी से शुरू हुआ। जल्द ही विद्यालय ने अपना पहला सत्र शुरू किया। सीमित संसाधनों और साधारण कमरों में भी पढ़ाई पूरे उत्साह से होने लगी।


धीरे-धीरे यह विद्यालय इलाके का शिक्षा केंद्र बन गया। यहाँ से पढ़े बच्चे आज शिक्षक, इंजीनियर, डॉक्टर, पुलिसकर्मी, सेना के जवान, व्यवसायी और प्रशासनिक अधिकारी बन चुके हैं।


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मिल्लत उच्च विद्यालय ने न केवल शिक्षा दी, बल्कि समाज को एकजुट भी किया। यहाँ वार्षिक खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम और विज्ञान प्रदर्शनियाँ आयोजित होने लगीं। पहले जहाँ लड़कियों की पढ़ाई 8वीं तक ही सीमित थी, अब वे मैट्रिक और इंटर की परीक्षा पास करके कॉलेज तक पहुँच रही हैं।


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इतनी बड़ी उपलब्धियों के बावजूद, आज भी इस विद्यालय तक पक्की सड़क नहीं है। खेतों की संकरी मेड़ों से होकर, कीचड़ और पानी पार करके बच्चों को स्कूल जाना पड़ता है। बारिश में यह स्थिति और भी खराब हो जाती है।


कई बार बच्चे कपड़े और जूते गंदे करके स्कूल पहुँचते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है। फिर भी उनका हौसला कम नहीं होता, क्योंकि वे जानते हैं कि शिक्षा ही उनके जीवन में बदलाव ला सकती है।


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गाँव के लोग और विद्यालय के पूर्व छात्र अब इस समस्या को हल करने के लिए एकजुट हो रहे हैं। पंचायत, जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों तक कई बार सड़क बनाने की मांग पहुँचाई गई है, लेकिन अभी तक केवल आश्वासन मिले हैं।


लोगों का कहना है कि यदि यह सड़क बन जाए तो विद्यालय में और भी बच्चे दाखिला लेंगे और इसका दर्जा पूरे जिले में बढ़ जाएगा।


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मिल्लत उच्च विद्यालय, धपरा सिर्फ एक भवन नहीं, बल्कि यह एक सपना, संघर्ष और सामूहिक प्रयास का प्रतीक है। मरहूम अब्दुस सलाम खान की दूरदर्शिता, जमींदारों का सहयोग, पटना से मिली तेज़ मान्यता और ऐतिहासिक दंगल का आयोजन — ये सब इस विद्यालय के इतिहास को स्वर्णिम बनाते हैं।


अब जरूरत है कि सरकार और प्रशासन इस विद्यालय तक पक्की सड़क बनवाकर बच्चों के संघर्ष को कम करें और इस शिक्षा मंदिर को वह सम्मान दें, जिसका यह हकदार है।

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